मंगलवार, 17 मई 2011

नसीब......

यूँ मेरा कुछ न कह कर भी कुछ कह जाना,
अपने मन को यूँ कसोट कर खुद को समझाना,
था शायद येही मेरे नसीब में आना 
मेरे सामने था तुझे किसी और को अपना बनाना!!

8 टिप्‍पणियां:

  1. कभी कभी 'नसीब' आसानी से समझ में नहीं आता.जिसको हम एक प्रकार से बुरा समझते है,वही दूसरी प्रकार से अच्छा भी नजर आ सकता है.आपने चंद शब्दों में सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति की है.

    मेरे ब्लॉग पर आपके आने का बहुत बहुत आभार.मैंने आपके ब्लॉग को फोलो कर लिया है.

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  2. waah ji waah....
    bhaawnaaon ko abhivyakt karti hui, gagar me sagar bharti rachna.....

    prayas karte rahiye, recognitiohn milta jayega...

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  3. बहुत खूब .जाने क्या क्या कह डाला इन चंद पंक्तियों में

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  4. bahut sundar neha ji....achha laga aapko padh ke....follow kar rhi hu aaj se aapko....

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