शनिवार, 4 दिसंबर 2010

ek aas

एक आस
दोस्ती का एहसास था,
हमारे दिल की  एक आस थी.....
क्यूँ हुआ कुछ ऐसा की आज हमारी
आस ही एहसास बन के रह गयी...........!!

daastaan

दास्ताँ

तुने जो जख्म मुझे दिए हैं
वो तेरे मेरे प्यार के ही सिलसिले हैं
कोई कहीं होगा तेरा भी हमराह
कभी कभी हम बस ये सोचते हैं कि
शुक्र है हम तेरी याद में तो हैं
पर अफ़सोस तेरे लिए हम ना खिले हैं!

अरमाँ

ना गिला रहे ना शिकवा रहे
ज़िन्दगी की उधेड़बुन में, हम यूँ उलझते गए
ना उम्मीदें रहीं ना ख्वाईशें रहीं
खुद उसके अरमानो में डूबते गए
ना होश में रहे ना मदहोश रहे
हम तो बस उस पर मिट ते गए...!!!!