शनिवार, 4 दिसंबर 2010

daastaan

दास्ताँ

तुने जो जख्म मुझे दिए हैं
वो तेरे मेरे प्यार के ही सिलसिले हैं
कोई कहीं होगा तेरा भी हमराह
कभी कभी हम बस ये सोचते हैं कि
शुक्र है हम तेरी याद में तो हैं
पर अफ़सोस तेरे लिए हम ना खिले हैं!

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